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अन्ना बनाम सरकारी लोकपाल

मेरे बोल
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अन्ना ने आखिर सरकार को इस तरह से मजबूर कर दिया है कि अनचाहे ही सही सरकार एक मजबूर लोकपाल की ओर बढती नजर तो आ रही है.मजबूर इस तरह से कि पहले जन लोकपाल की शक्ल में लोकपाल का ड्राफ्ट आया . बबाल मचा ,तो कुछ संसोधन कर दिया. फिर बबाल मचा ,तो कुछ और संसोधन कर दिया.अब केबिनेट की मंजूरी के बाद जिस तरह का लोकपाल आ रहा है उसमे भी काफी बबाल की गुन्जाईश छोड़ रखी है.काम तो हो रहा है मगर बगैर चिल्लपों के, सीधे तरीके से नहीं. समझ में नहीं आ रहा है की फजीहत की किस सीमा पर जाकर सरकार जन आकाक्षाओं के अनुरूप लोकपाल लेकर आएगी.

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