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फिर हार गए हमारे लकड़ी के शेर

मेरे बोल
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क्या हो गया है? अपने घर के शेर बाहर हर जगह ढेर. अरे कोई तो चले,सब के सब फिस्स. कुछ को देखकर तो यह लगता है की ये तो पिकनिक मनाने गए हैं. खा-पीकर ,मौज मस्ती करके मैदान में जाते हैं फिर थोड़ी देर में ही आराम करने पवेलियन में वापस. फील्डिंग करते हैं तो ऐसा लगता है की ये खड़े क्यों हैं घर बैठकर आराम क्यों नहीं करते बेचारे! खामखाँ ये क्रिकेट बोर्ड वाले इन बेचारों को परेशान करते रहते हैं. कोई बिरला ही होगा जो इनकी शारीरिक और मानसिक हालत देखकर इन पर दया न करे.
बहुत हो गया क्रिकेट-क्रिकेट. अब दो -एक साल तक क्रिकेट बंद कर दो. इनको खिलाओ-पिलाओ ,घुमाओ – फिराओ. कम से कम देश की थुक्का फजीहत तो मत करवाओ. दो -एक साल क्रिकेट बंद तो क्रिकेट बोर्ड, चयनकर्ता ,विज्ञापन देने वाले प्रायोजक,क्रिकेट की दीवानी पब्लिक सब के कलेजे में ठंडक रहेगी. कम से कम किसी और खेल का तो उद्धार हो सकेगा. गांवों से कुछ भोले-भाले मेहनती लोगों का ही भला हो जायेगा. अब ये बेचारे भले ही इतनी इज्जत न कमा पायें , कम से कम बाहर जाकर बेइज्जती तो नहीं करावेंगे.

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