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सरक-सरक कर बनती सरकार

मेरे बोल
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पहले गला फाड़-कान फोड़ नारों की धूम-धाम,गली-गली घूम-घाम प्रतियोगिताएँ चली. वोट दो -वोट दो. मुझे ही दो मैं ही सबसे अच्छा हूँ ,बाकी सब चोर हैं ,लुटेरे हैं, मैं ही आपके काम आऊंगा. अब ये बात और है कि ये जीत गए तो फिर किसी को पहचानते नहीं हैं नजरों का फेर होता है.जनता के पास आते ही नहीं क्योंकि जनता पांच साल का लाइसेंस जो दे देती है , उससे ये देश- दुनिया घूमते हैं और अपने कुनबे का सर्वांगीण विकास करते हैं .
छोड़ो यार ! वोट पड़ गए तो सरकार किसी न किसी कि बनेगी ही. बेल तो पकेगा ही कोए के बाप का क्या? लेकिन मजे कि बात तो देखो अभी गिनती नहीं हुई लेकिन सरकारें बनने लगी. जोड़-तोड़ शुरू कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा , मैं नहीं बन सका तो उसे भी नहीं बनने दूंगा. अब किसी के यहाँ भीतरघात हो रही है और किसी के यहाँ बाहरघात. देखो! हार गए तो घात लग गयी जीत गए तो आपकी मेहनत थी. आपके बुरे कर्मों का कोई चर्चा नहीं होगा. धन्य हैं आप लोग.
मान्यवर! अपने ही विकास में मत लगे रहो, जनता भी आपको देखती है. विकास के लिए कार्य हो, पैसों कि बंदरबाट न हो, काम सिर्फ हवाई न होकर जमीन पर हों, बातें बड़ी नहीं काम बड़ा हो, तो सरकार , सरक-सरक कर नहीं दौड़ कर बनती है .बिहार-गुजरात का उदाहरण आपके सामने है.

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