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आखिरी पड़ाव

मेरे बोल
मेरे बोल
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एक पुरानी सी चारपाई पर पड़ी है वो
शायद घर के लिए अब अवांछित,
देखती रहती है, अपनों का बेगानापन
काल-दूत के इंतजार में.

तू बीबी-बच्चों के साथ
मस्त है अब अपनी दुनिया में,
सोचता नहीं, एक बार भी
कि किसी और को भी है तेरी जरूरत.

कभी घंटों चिपक कर पीता था दूध
तू जिसके स्तन से,
आज आती है बदबू
तुझे उसी के तन से.

तेरी एक छींक पर जो
जागती रहती थी रात भर,
वो खांसते-खांसते बेदम हो गई
तू झाँकने भी नहीं आया.

क्या कहा? बुढ़ापा है
नहीं! यह काल चक्र है जो घूमता है
इस चक्र में तू भी घूमेगा
चक्र फिर दोहराएगा अपने को, तेरे साथ भी.

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