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युवराज ने कहा कि वो अभी सीख रहे हैं, कौन? युवराज सिंह?……. जिसने विश्व कप में अपना कमाल दिखाया. आप गलत समझे…? युवराज का मतलब युवराज सिंह ही नहीं होता. एक जाने -माने युवराज और भी हैं जो मैदान में जोर-शोर से आते हैं,खूब हवा बनाते हैं. ऐसा नहीं है कि मेहनत नहीं करते. खूब मेहनत करते हैं, यहाँ तक कि दाढ़ी भी नहीं बनाते हैं. कभी-कभी बड़ी जोशीली बातें भी करते हैं, कभी-कभी कुरते की बाहें भी ऊपर करते हैं. इतनी मेहनत के बाद फिर जिस मैदान में जाते हैं सूपड़ा साफ…..अपनी ही टीम का? बिहार के बाद यू.पी. से बड़ी उम्मीदें थीं, पर हुआ वही जो मंजूरे दिग्गी राजा था. हार के बाद भी बोले “अभी सीख रहा हूँ…” . कुछ समझ में आया?…. अरे! इसे ही तो कहते हैं कुछ सीखने का जज्बा, बहुत कुछ लुटा दिया न सीखने में.
42 साल की उम्र भी कोई उम्र होती है. अभी तो खेलने-खाने के दिन हैं,आपके. सीखो बन्धु सीखो!, सीखने की कोई उम्र नहीं होती. अम्मा ने समय से शादी कर दी होती तो बस दो बच्चों के बाप ही तो होते.राजनीति में तो सत्तर-अस्सी साल के भी जवान ही होते हैं. मौका मिले तो ये जवान किसी भी षोडसी से शादी को तैयार…. जाने खाते क्या हैं? कभी-कभी तो चमचे ऐसे-ऐसों को युवा बताते हैं कि हम तो चक्कर में पड़ जाते हैं कि अगर वो युवा हैं तो हम क्या हैं? पर …. उनकी तुलना में तो आप तो सचमुच बच्चे हो…. और सीखते रहो बाबू…सीखने में क्या जाता है? अभी सीखोगे तो बुढ़ापे में काम आएगा.सरदार जी पूरी उम्र सीखते रहे हैं ,फिर भी कितना सीख पाए सबको पता है.अभी से कुछ सीख जाओगे या बन जाओगे तो बुढ़ापे में क्या करोगे. जवानी तो कट ही जाती है बुढ़ापा काटने के लिए कुछ तो सीखना ही चाहिए. चाहो तो शोध करा लो, अपने ८०% नेता तो अपना बुढ़ापा काटने के लिए ही राजनीति करते हैं. बाकी काम के लिए अनफिट पर राजनीति के लिए एकदम फिट. किसी को चलने में तकलीफ है, कोई खड़ा ही नहीं हो पा रहा है, कोई टेढ़ा हो गया है, किसी का ऑपरेशन हो रहा है और कोई गोलियों-इन्जेक्शनों के सहारे जवान बना हुआ है. कुछ तो ऐसे हैं कि दुनिया छोड़ने के लिए तैयार है, पर राजनीति नहीं छोड़ पा रहे हैं. दुनिया में सभी देशों के नेता एक उम्र के बाद सम्मान के साथ रिटायर हो जाते हैं,पर अपने नेता तो मरने पर ही रिटायर होते हैं. कभी हुए भी तो जनता ने जबरन रिटायर किया या अपनों ने ही धकिया कर बाहर किया. कोई इनको बुड्ढा कहकर तो दिखाए. फ़ौरन जबाब मिलेगा बुड्ढा होगा तेरा बाप.
पर लल्ला आप सीखो!…. सीखो!… शादी मत करना क्योंकि फिर वो भी कुछ सिखाएंगी. तब न इधर के रहोगे न उधर के. अभी ये तो कह सकते हो कि कुछ सीख रहा हूँ. अपने यहाँ शादी-शुदा मर्दों की तो ये दशा है कि कोई मानने को तैयार ही नहीं होता कि वो भी कुछ सीखने लायक बचा है. देखो! आप युवराज हो, सबसे पहले तो इन बुड्ढों को काबू में करने की कला सीखो. पता नहीं कब,कौन,क्या और कैसी खंखार छोड़ दे, फिर अम्मा और दादा परेशान होते हैं. अब दादा को ऐसी जगह भेजना चाह रहे हो जहाँ से वो आपकी सीधे कोई मदद तो कर नहीं कर पाएँगे. सरदार जी तो वैसे ही हमेशा परेशान से दिखते हैं,कोई कह रहा था कि उनकी हंसी भी ऐसी ही है कि लगता है कहीं दर्द हो रहा है. क्या करें बेचारे? अपने ही दर्द देते रहते हैं. किसी का कुछ बिगाड़ तो पाते नहीं, हर कोई अपनी मनमानी कर जाता है.
बन्धु! आजकल राजनीति का मतलब तिकड़मबाजी हैं, इसलिए किसी बड़े तिकड़मबाज को पकड़ो दो-चार साल शागिर्दी करो फिर देखो क्या असर होता है. कुछ फर्क पड़ा तो ठीक नहीं तो गुरु बदल लो कुछ समय और कट जाएगा. दिग्गी राजा से काम नहीं चलने वाला, अब तो लोग उन्हें कुछ-कुछ…. समझने लगे हैं. आप भी किसके चक्कर में पड़े हो. आपकी पार्टी कहती है कि पूरा देश युवराज को देख रहा है,पर आप किसे देख रहे हैं पता नहीं चल रहा है. पर कोई देखे या न देखे आप की चुप्पी कुछ और कहती है. श्श्श्स!…… कुछ तो है? अगर कुछ नहीं है तो सीखते…… रहो. देश तो चल ही रहा है, चलता ही रहेगा. अपने देश में बुड्ढों की कोई कमी नहीं है.
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